डा बृजेश सती/ मीडिया प्रभारी
ज्योतिर्मठभारत की समृद्ध धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण और मानवीय मूल्यों की रक्षा में हमारे ऋषि-मुनियों साधु-संतों की उल्लेखनीय भूमिका रही है। ऋषि मुनि साधु संत स्वंय वीतराग रहते हुए भी मानव कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहे हैं। सनातन धर्म की परंपरा के ध्वज वाहकों की एक श्रृंखला है। इसी कड़ी में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी भी हैं।ज्योतिष पीठ पर 12 सितम्बर 2022 को अभिषिक्त होने के बाद अनंत श्री विभूषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज के पावन सानिध्य एवं मार्गदर्शन में कई महत्वपूर्ण धार्मिक आध्यात्मिक और ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुए। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर आरूढ होने के बाद स्वामी श्री ने पिछले 11 महीनों में धर्म, आध्यात्म, शिक्षा, संस्कृति , सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के साथ ही मानवीय मूल्यों की रक्षा एवं जनहित से जुड़े हुए हर छोटे-बड़े विषय के हर संभव समाधान का प्रयास किया है। ज्योतिर्मठ में कुछ महत्वपूर्ण के कार्यों का विवरण इस प्रकार है।बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर उपस्थिति बदरीनाथ में 239 साल बाद ऐतिहासिक क्षणबद्री विशाल मंदिर के इतिहास में लगभग 239 वर्षों के बाद यह पहला अवसर था। जब वर्ष 2022 की यात्रा काल में मंदिर के कपाट बंद होने के पावन अवसर पर ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज उपस्थित रहे। स्वामी श्री की उपस्थिति ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व से अति महत्वपूर्ण रही । स्थानीय लोगों एवं धार्मिक मामलों के जानकारों के अनुसार लगभग 239 वर्षों के बाद यह क्षण मन को आनंदित करने वाले रहे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान बदरीनाथ जी के कंबल को घी से ढका जाता है । उसके लिए ज्योतिर्मठ की ओर से शंकराचार्य जी के निर्देश पर बदरी गाय का घी मंदिर समिति को उपलब्ध कराया गया। आदि गुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ (वर्तमान में जोशीमठ के नाम से जाना जाता है ) में वर्ष 2023 की शुरुआत में जबरदस्त भू धंसाव की घटना हुई। जिसमें नगर क्षेत्र की कई बार्डों के सैकड़ों मकान क्षतिग्रस्त हो गये। इनमें से कई लोगों को अपने घर से दूसरी जगह राहत शिविरों में रहना पड़ा। जैसे ही स्वामी श्री को इस घटना की जानकारी मिली। उन्होंने तत्काल ज्योतिर्मठ आपदा सेवालय को निर्देशित किया कि वे आपदा पीड़ित परिजनों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराएं। स्वामी श्री 7 जनवरी को जोशीमठ पहुंचे। आपदा प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण कर पीड़ितों से मिले । इसके बाद 15 जनवरी को एक बार पुनः स्वामी श्री जोशीमठ पहुंचे और 16 जनवरी से जोशीमठ की रक्षा के लिए नृसिंह रक्षा महायज्ञ नृसिंह मंदिर परिसर में 2 माह तक आयोजित किया गया। जिसमें लाखों आहुतियां दी गई।कुपवाडा में शारदा मंदिर के कपाट खुलेभारतीय नियंत्रण रेखा के पास कश्मीर के कुपवाड़ा में 75 सालों के बाद शारदा मंदिर के कपाट विधि विधान और वैदिक मंत्रोचार के बीच खोले गए । इस अवसर पर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से 3 पीठों, ज्योतिर्मठ, द्वारका शारदा पीठ और श्रृगेरी पीठ के शंकराचार्य के प्रतिनिधियों ने इस धार्मिक आयोजन में भाग लिया । देश के गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल ने इस अवसर पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की।उल्लेखनीय है कि आदि शंकराचार्य ने चार पीठों के साथ ही कश्मीर स्थित सर्वज्ञपीठ में भगवती श्रीशारदादेवी की पूजा की थी । तब से ही यह सनातनियों की शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा है । सन 1948 तक स्वामी नन्दलाल ने सर्वज्ञपीठ स्थित शारदादेवी की पूजा परम्परा को जीवित रखा। धर्मिक आधार पर देश के विभाजन के बाद सर्वज्ञपीठ पाक अधिकृत कश्मीर में चला गया। इस पौराणिक मन्दिर को वहां के मुसलमानों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। जो आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे है । कश्मीरी पण्डितों के एक विशेष समूह ने रवीन्द्र पण्डिता के नेतृत्व में शेव शारदा कमेटी नाम से संस्था बनाकर मूल पीठ की प्राप्ति के लिए व्यापक अभियान चलाया । शारदीय नवरात्र के अवसर पर शारदा मंदिर के कपाट खोले गए। चार द्वारोंं में से उत्तरी द्वार का कपाट खोलने के लिए ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिष्य ब्रह्मचारी मुकुंदानन्द ने उत्तरी द्वार खोला । बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिर के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ा। जब वर्ष 2023 के यात्रा काल में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज बदरीनाथ एवं केदारनाथ के मंदिरों के कपाट खुलने के अवसर पर उपस्थित रहे। इस यात्रा काल में 25 अप्रैल को केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले गये। पहली बार बतौर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज इस अवसर पर उपस्थित रहे । कई सौ वर्षों के बाद यह अवसर आया ।27 अप्रैल को बदरीनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले गए । मंदिर के कपाट खुलने की परंपरा के अवसर पर ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य उपस्थित रहे। शीतकालीन मंगल यात्राउत्तराखंड स्थित चार धामों के शीतकालीन पूजा स्थलों में इस यात्रा कल से शीतकालीन मंगल यात्रा आपके दिशा निर्देशन में शुरू की गई। इसके तहत यमुनोत्री के शीतकालीन पूजन स्थल खरसाली , गंगोत्री के मुख़वा, केदारनाथ के ओमकारेश्वर मंदिर और बदरीनाथ के पूजा स्थल नृसिंह मंदिर और योगध्यान मंदिर में मंगल यात्रा पंहुची।जोशीमठ आपदाआप में मानवीय संवेदना मानो कूट-कूट कर भरी है। पिछले दो दशकों का पावन सानिध्य मुझे मिला। इस दौरान मैंने कई घटनाक्रमों को करीब से देखा और जाना। इनमें से कुछ का यहां पर मैं उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं । इसके अलावा स्वामी श्री से जुड़े कई अन्य अनछुए पहलुओं से भी पाठकों को रूबरू कराना चाहता हूं। जोशीमठ में भूधंसाव की घटना के दौरान भी स्वामी श्री हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर नजर बनाए रखें इस दौरान उन्होंने तीन बार प्रभावित जोशी मटका दौरा किया ।आपदा राहत शिविर मे जब नवजात कन्या ने पकडी स्वामी श्री की अंगुली15 जनवरी को लगभग 8 बजे स्वामी श्री के पावन सानिध्य में हम लोगों ने ज्योतिर्मठ के लिए प्रस्थान किया । लगभग 12 घंटे के सफर के बाद स्वामी श्री ज्योतिर्मठ पंहुचे। कुछ समय गद्दी स्थल पर बिताने के बाद स्वामी श्री नगर क्षेत्र में बनाए गये सभी आपदा राहत शिविरों में गये। सबसे पहले मठ परिसर से कुछ मीटर की दूरी पर है प्रशासन ने नगर पालिका परिषद परिसर में राहत शिविर बनाया था । यहां स्वामी श्री ने प्रभावितों से मुलाकात की । शिविर के प्रथम तल पर स्थित एक हॉल में छोटी सी नवजात कन्या पर स्वामी श्री की नजर पड़ी ।जैसे ही स्वामी श्री नवजात कन्या के समीप पहुंचे तो उसने स्वामी श्री का अंगुली पकड़ ली। निश्चित रूप से यह सब लोगों के लिए अचंभित करने वाला दृश्य था । स्वंय स्वामी श्री कुछ देर के लिए निशब्द रहे। यहां से कुछ दूरी पर नगर स्थित गुरुद्वारे में भी राहत शिविर बनाया गया था। वहां पर प्रभावितों से मिलकर उनकी कुशलक्षेम पूछी । इसके बाद स्वामी श्री ने अन्य राहत शिविरों में जाकर प्रभावितों का हालचाल जाना ।निश्चित रूप से दिनभर की थकान महाराज श्री के चेहरे पर कहीं भी दिखाई नहीं दी। रात 11 बजे कड़ाके की सर्दी में आश्रम परिसर पहुंचे।