लाइलाज नहीं है ’लकवा’

Health: लाइलाज नहीं है ’लकवा’ लक्षण नजर आते ही समय पर शुरू करें इलाज। लकवा जैसी जानलेवा बीमारी का ईलाज है संभव, नहीं करे लापरवाही। आज के वैज्ञानिक युग में हर असंभव चीजों को संभव किया है। बहुत सी अचकित्स्य बीमारियों का भी इलाज अब मुमकिन है। ब्रेन स्ट्रोक ( लकवा) जैसे बीमारी को भी मात दिया जा सकता है। ऋषिकेश AIIMS के न्यूरोलॉजी विभाग के ऐसोसिएट प्रोफेसर आशुतोष तिवारी ने बताया कि लकवा के शुरुआती लक्षणों कि पहचान कर समय में उपचार करने पर इस बीमारी से व्यक्ति ठीक हो सकता है।

एम्स ऋषिकेश के न्यूरोलॉजी विभाग के ऐसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशुतोष तिवारी ने बताया कि शुरुआती लक्षणों, उपचार में समय की महत्ता और बचाव की जानकारी नहीं होने से कई बार यह बीमारी जानलेवा साबित हो जाती है। समय रहते इलाज किया जाए तो मरीज ठीक भी हो सकता है।

उन्होंने बताया कि हार्ट अटैक की तरह ही यह एक प्रकार का दिमाग का अटैक होता है। अलग यह है कि इसमें हार्ट अटैक की तरह असहनीय दर्द नहीं होने से रोगी इसे गंभीरता से नहीं लेता है और लापरवाही बरतने पर यही कारण लकवे के इलाज में देरी का कारण बन जाता है। दिल से दिमाग तक खून ले जाने वाली नसों में खून का थक्का जम जाने ( इस्केमिक स्ट्रोक ) या दिमाग की नसों में खून का रिसाव होने से लकवा हो जाता है।

लकवे के लक्षण
अचानक से एक तरफ के हाथ या पैर में कमजोरी, चेहरे का तिरछा हो जाना, आवाज या चाल का लड़खड़ाने लगना, आंख की रोशनी चले जाना इसके तत्कालिक लक्षण हैं।

लकवे से नुकसान
हमारे ब्रेन का दायां हिस्सा बाईं तरफ और बायां हिस्सा दाईं तरफ के हाथ-पैर व चेहरे को कंट्रोल करता है। ब्रेन के इन हिस्सों को खून की आपूर्ति अलग-अलग नलियों (धमनी) द्वारा होती है। नली में थक्का जमने या खून के रिसाव होने से जिस भाग को नुकसान होता है मरीज में उस अंग की कमजोरी या कार्य क्षमता में कमी आ जाती है।

इलाज में समय का महत्व
स्ट्रोक के इलाज में समय का बहुत महत्व है। लकवे के शुरुआती 4 से 5 घंटे, विंडो पीरियड या सुनहरे घंटे कहे जाते हैं। इस दौरान मरीज के अस्पताल पहुंचने पर खून के थक्के जमने से होने वाले स्ट्रोक में थक्का गलाने वाली दवा का प्रयोग किया जाता है। थक्का गलाने की इस प्रक्रिया को थ्रॉम्बोलिसिस कहते हैं। इस प्रक्रिया में उपयोग की जाने वाली दवा का मूल्य लगभग 20 से 30 हजार रुपये है। मगर यह सुविधा सभी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं होती है और मरीज को इधर-उधर ले जाने में ही गोल्डन आवर का महत्वपूर्ण समय समाप्त हो जाता है।

लकवे का इलाज
गोल्डन ऑवर का समय बीत जाने के बाद अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों के थक्के बनने या खून के रिसाव के कारणों को पता करके उसका निवारण किया जाता है। खून के थक्के या रिसाव के कारण दिमाग में प्रेशर बढ़ता है, जिसे शुरुआत में इंजेक्शन व दवा से कंट्रोल किया जा सकता है। बड़े थक्के या रिसाव की स्थिति में ब्रेन सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।

लकवे के कारण
न्यूरोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मृत्युजंय कुमार ने बताया कि कोई भी व्यक्ति लकवे से ग्रसित अनियंत्रित बीपी, शुगर, हार्ट की बीमारी, एथरोस्क्लेसिस (धमनियों में चिकनाई का जमाव), आनुवंशिक कारणों आदि के कारण होता है।

सतर्कता व बचाव
35 से 40 वर्ष के बाद नियमितरूप से बीपी व शुगर की जांच कराना, भोजन में तेल, मसाले व वसा का इस्तेमाल कम करना, हरी सब्जियों और फलों का उपयोग, नियमिततौर से व्यायाम करना इसमें लाभकारी है। सांस फूलने, सीना भारी होने या सीने में दर्द महसूस होने पर शीघ्र चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। नींद नहीं आने वाले लोगों को इसकी संभावना ज्यादा रहती है।

लकवा पड़ने पर क्या करें
डॉक्टर से पूछे बिना मुंह से कुछ नहीं दें। मरीज को दाईं या बाईं करवट में रखें और इसी स्थिति में अस्पताल ले जाएं। अस्पताल से आने के बाद बताई गई एक्सरसाइज, दवा व संबंधित निर्देशों का अच्छे से पालन करें। बेहतर सुधार के लिए फॉलोअप नहीं छोड़ें।

एम्स में बेहतर इलाज उपलब्ध
एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने बताया कि मैकेनिकल थ्रोमबेक्टमी के अलावा एम्स ऋषिकेश में लकवे के मरीजों के लिए आवश्यक इलाज, दवा और आधुनिक तकनीक आधारित सर्जरी की बेहतर सुविधा उपलब्ध है। अस्पताल में मासिक तौर पर ब्रेन स्ट्रोक के 40 से 50 मरीज भर्ती किए जाते हैं। इनमें से अधिकांश मरीज अस्पताल तक तब पहुंचते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है। देरी के कारण इलाज भी प्रभावित होता है। इसलिए लोगों को चाहिए कि ब्रेन स्ट्रोक (लकवा) के लक्षणों को नजर अन्दाज नहीं करें और समय रहते इलाज शुरू करें।

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