6100 किलो का सैटेलाइट 16 मिनट में कक्षा में स्थापित
प्रधानमंत्री मोदी ने इसरो की सफलता पर जताया गर्व
श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस वर्ष के अपने अंतिम मिशन के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज की है। इसरो ने अपने हैवी-लिफ्ट रॉकेट एलवीएम-3 के जरिए अब तक के सबसे भारी वाणिज्यिक संचार उपग्रह ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। यह मिशन पूरी तरह व्यावसायिक रहा, जिसने वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की तकनीकी क्षमता और विश्वसनीयता को और मजबूत किया है।
यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 8:55 बजे किया गया। लगभग 16 मिनट की उड़ान के बाद 6,100 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह पृथ्वी से करीब 520 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इस मिशन में इसरो के एलवीएम-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जिसे इसकी भारी भार वहन क्षमता के कारण ‘बाहुबली’ भी कहा जाता है। यह एलवीएम-3 की छठी उड़ान और तीसरी वाणिज्यिक उड़ान रही।
इसरो के अनुसार यह लॉन्चिंग न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और अमेरिका की एएसटी स्पेसमोबाइल कंपनी के बीच हुए वाणिज्यिक समझौते का हिस्सा है। ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 अब तक भारत से लॉन्च किया गया सबसे भारी वाणिज्यिक संचार उपग्रह है, जो अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए इसरो की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
इस ऐतिहासिक सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम युवाओं की ताकत से और अधिक आधुनिक व प्रभावी बन रहा है। एलवीएम-3 की भरोसेमंद क्षमता भविष्य के गगनयान जैसे मिशनों, वाणिज्यिक लॉन्च सेवाओं के विस्तार और वैश्विक साझेदारियों को नई मजबूती दे रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह मिशन इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे भारत की पकड़ वैश्विक कमर्शियल स्पेस सेक्टर में और मजबूत होगी। एलवीएम-3 पहले ही चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और वनवेब जैसे अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। वनवेब मिशन के तहत इसरो ने दो चरणों में 72 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया था।
ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रह अगली पीढ़ी की संचार तकनीक का हिस्सा है। इसके सफल संचालन के बाद 4जी और 5जी स्मार्टफोन को सीधे सैटेलाइट के जरिए ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी मिल सकेगी, वह भी बिना किसी अतिरिक्त एंटीना या विशेष हार्डवेयर के। इससे पहाड़ी क्षेत्रों, समुद्रों, रेगिस्तानों और दूरदराज के इलाकों में मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध कराना आसान होगा।
इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, तूफान या भूस्खलन के दौरान जब जमीन पर मौजूद टेलीकॉम ढांचा प्रभावित हो जाता है, तब सैटेलाइट आधारित संचार सेवाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं। इस मिशन के साथ इसरो ने न केवल तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन किया है, बल्कि भविष्य की संचार क्रांति की दिशा में भी एक मजबूत कदम बढ़ाया है।

