कुंभ मेला होने की वजह से जहां कुंभ नगरी प्रयागराज में इस समय साधु संतों और श्रद्धालुओं की चहल-पहल हो रही है वहीं दूसरी ओर दूसरी कुंभ नगरी हरिद्वार के आश्रमों और अखाड़ों में सन्नाटा पसरा हुआ है। क्योंकि हरिद्वार के सभी अखाड़ों और आश्रमों के श्री महंत, महंत आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और साधु संत सभी प्रयागराज चले गए हैं।इक्के दुक्के साधु संत ही हरिद्वार के आश्रमों और अखाड़ों में दिखाई दे रहे हैं। हरिद्वार में साधु संतों के 13 अखाड़ों के मुख्यालय स्थित है। जिनमें दशनामी नागा संन्यासियों के सात अखाड़े पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा, पंचायती श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंच अग्नि अखाड़ा, श्री आवाहन अखाड़ा, पंचायती श्री महानिर्वाणी अखाड़ा, पंचायतीश अटल अखाड़ा,
वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े श्री दिगंबर अनी, श्री निर्मोही अनी एवं श्री निर्वाणी अनी, उदासीन संप्रदाय के दो अखाड़े पंचायती श्री उदासीन बड़ा अखाड़ा, पंचायती श्री नया उदासीन अखाड़ा तथा सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा प्रतिपादित श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा शामिल है। हरिद्वार के 2021 के कुंभ मेले की समाप्ति के साथ ही प्रयागराज के 2025 के कुंभ मेले की तैयारी हरिद्वार के साधु संतों ने शुरू कर दी थी। बड़ी तादाद में महीना पहले हरिद्वार के सभी अखाड़ों और आश्रमों के साधु सतों ने अपने जखीरे प्रयागराज भेज दिए थे। जिनमें सोने चांदी के बड़े-बड़े आसन शामिल थे। हरिद्वार में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज और पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज की मुख्य पीठ भी स्थित है। इसके अलावा कोई महामंडलेश्वर और साधु संतों के आश्रम भी स्थित है। हरिद्वार में साधु संतों के आश्रमों की तादाद 2 हजार से अधिक होगी। इसके अलावा कई अखाड़ों के द्वारा इंटर डिग्री और संस्कृत विद्यालय संचालित किया जा रहे हैं। जिनमें संस्कृत छात्रों की तादाद भी 10 हजार के आसपास होगी। यह सब प्रयागराज कुंभ मेले में गए हुए हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा के सचिव श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज कहते हैं कि प्रयागराज का कुंभ मेला हम सबके लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह तीन नदियों गंगा जमुना सरस्वती के संगम के तट पर होता है। प्रयागराज के कुंभ मेले में तीन पवित्र पावन नदियों में स्नान करने का फल एक साथ प्राप्त होता है। जो एक विलक्षण और अद्भुत क्षण होता है। इसका अत्यधिक धार्मिक महत्व है।
“हरिद्वार के नगर निकाय चुनाव में प्रयागराज कुंभ का असर”
हरिद्वार में इस समय नगर निकाय चुनाव हो रहे हैं। प्रयागराज के कुंभ मेला का प्रभाव हरिद्वार के नगर निकाय चुनाव में पड़ रहा है। क्योंकि सभी साधु संत और उनके आश्रम के कर्मचारी प्रयागराज में कुंभ मेले में गए हुए हैं। इसीलिए 23 जनवरी को होने वाले नगर निकाय के चुनाव में हुए मतदान नहीं कर सकेंगे। जिसका प्रभाव चुनाव के मतदान पर पड़ रहा है। जिसकी फिक्र चुनाव लड़ रहे दो प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस को है। खासकर भाजपा के चुनाव लड़ रहे पार्षदों और मेयर को साधु संतों के वोटो की चिंता सता रही है। हरिद्वार के उत्तरी क्षेत्र भूपतवाला और कनखल क्षेत्र में साधु संतों के आश्रम अखाड़े बड़ी तादाद में है।
“हरिद्वार के कुंभ मेला के बाद लगता है प्रयागराज में कुंभ मेला”
हरिद्वार में कुंभ मेला के 3 साल बाद प्रयागराज में कुंभ मेला लगता है। परंतु इस बार प्रयागराज में कुंभ मेला हरिद्वार के कुंभ मेला 2021 के बाद 4 साल बाद लग रहा है। ज्योतिष गणना के अनुसार हर 100 साल बाद लगने वाला कुंभ मेला 1 साल पंचांग के अनुसार घट जाता है। इसीलिए 2021 में हरिद्वार में कुंभ मेला 100 साल बाद हुआ और इसलिए 2022 की बजाय 2021 में लगा था।
“अलग-अलग तिथियों में लगता है चार स्थानों में कुंभ मेला”
कुंभ मेला की तिथियां अंतरिक्ष में खगोलीय घटनाओं के आधार पर निर्धारित होती हैं। बृहस्पति ग्रह और सूर्य की स्थिति का कुंभ मेले से गहरा नाता है। जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करते है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार लगता है। ज्योतिषाचार्य डॉ प्रदीप जोशी बताते हैं कि प्रयागराज में संगम के पावन तट पर कुंभ मेला उस समय होता है जब सूर्य मकर राशि में और बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं। हरिद्वार कुंभ नगरी में कुंभ मेला गंगा के पावन तट पर उस समय लगता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में विराजमान होते हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन में कुंभ मेला उस समय शिप्रा नदी के पावन तट पर लगता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में स्थित होते है। इसलिए उज्जैन के मेले को सिंहस्थ भी कहा जाता है। और नासिक में कुंभ मेला उस समय लगता है जब सूर्य और बृहस्पति दोनों ही सिंह राशि में विराजमान होते हैं।
हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं। 12 राशियां 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो समय चक्र और मानव जीवन से जुड़े होते हैं। कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने पर यह मेला आयोजित होता है। 12 साल का चक्र मानव जीवन में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा के परिवर्तन का दौर होता है और यह समय आत्मशुद्धि, आस्था,श्रद्धा और ध्यान के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
कुंभ मेला सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है। कुंभ मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में 12 साल में लगता है।प्रयागराज का कुंभ मेला सभी कुंभ मेलों में सबसे अधिक विशिष्ट स्थान लगता है क्योंकि यह तीन नदियों गंगा जमुना सरस्वती के संगम पर लगता है। कुंभ का अर्थ है- कलश। ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न होता है। कुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख नदियों- गंगा, यमुना, गोदावरी और शिप्रा के तट पर लगता है। कुंभ मेला 4 पवित्र नगरों प्रयागराज, हरिद्वार,उज्जैन, और नासिक में ही लगता है।इस साल महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हो रहा है और 26 फरवरी महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा।
“प्रयागराज और हरिद्वार के कुंभ मेला के शाही स्नानों के क्रम और तिथियों में अंतर”
साभार-जनसत्ता
प्रयागराज के कुंभ मेला में यह अंतर है कि प्रयागराज में कुंभ का पहला शाही स्नान मकर संक्रांति से शुरू होता है। जबकि हरिद्वार में कुंभ का पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन शुरू होता है। हरिद्वार में महाशिवरात्रि के दिन होने वाले कुंभ के शाही स्नान में केवल दशनाम संन्यासियों के साथ अखाड़े ही भाग लेते हैं। जबकि प्रयागराज में कुंभ के पहले शाही मकर संक्रांति में सभी तेरह अखाड़े भाग लेते हैं। प्रयागराज में शाही स्नान में सबसे पहले पंचायती श्री महानिर्वाणी अखाड़ा स्नान करता है। जबकि हरिद्वार में सबसे पहले शाही स्नान श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा करता है।