मृत्युंजय मिशन के तत्वाधान में गैण्डीखाता में आयोजित मर्म चिकित्सा एवं प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं मृत्युंजय मिशन के संस्थापक डा.सुनील जोशी ने देश-विदेश से आए चिकित्सकों, प्रशिक्षकों, योगाचार्यों एवं प्रतिभागियों को मर्म चिकित्सा के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि मर्म चिकित्सा शरीर में अधिपति मर्म से लेकर शुरू हुए मर्म बिंदुओं को उत्प्रेरित कर की जाती है। जिसके अप्रत्याशित प्रभाव देखने को मिलते हैं।
उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा बिना किसी दवाई और ऑपरेशन के की जाती है। इसमें शरीर के अंदर स्थित विभिन्न मर्म बिंदुओं को सक्रिय कर स्थान विशेष पर हो रहे दर्द, वात, कफ, पित्त के उपद्रव से हो गई व्याधियों को दूर किया जाता है। यह दुष्प्रभाव रहित वैदिक चिकित्सा पद्धति का अंग है। डा.मयंक जोशी ने बताया कि मर्म चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा पद्धति के युग में विलुप्त सी हो गई थी। ऋषि मुनियों की देन इस चिकित्सा पद्धति को पुनः जीवित करने और व्यवहार में लाने का कार्य मृत्युंजय मिशन कर रहा है। शिविर के तीसरे दिन प्रतिभागियों को विभिन्न रोगों की चिकित्सा और शरीर में स्थित सेंसिटिव मर्म बिंदुओं के बारे में जानकारी दी गई।
मर्म चिकित्सा विशेषज्ञ विवेक चौधरी, शत्रुघ्न डबराल ने प्रशिक्षु प्रतिभागियों से आग्रह करते हुए कहा कि मर्म चिकित्सा सेंसिटिव मर्म बिंदुओं को बचाकर की जा जानी चाहिए। सेंसिटिव मर्म बिंदुओं पर आघात मरीज की मृत्यु का कारण भी हो सकता है। अतः जब भी मर्म चिकित्सा की जाए तो शरीर में स्थित सेंसिटिव मर्म बिंदुओं को बचाकर करनी चाहिए। विपिन चौधरी, सतीश पुंडीर, राजेश कुमार वर्मा योगेश पांडे आदि ने प्रतिभागियों को मर्म चिकित्सा और उसकी उपयोगिता के विषय में जानकारी दी। पांच दिवसीय मर्म चिकित्सा प्रशिक्षण शिविर का समापन 25 नवंबर को प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण के साथ होगा।