छोटे साहिबजादों को दीवार में ऐसे जिंदा चिनवाया गया-जानें दो नन्हें साहिबजादों की रोंगटे खड़े कर देनेवाली शौर्य भरी शहादत गाथा! श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जा रहा है

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। छोटे साहिबजादों का स्मरण आते ही लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और सिर श्रद्धा से झुक जाता है। देश में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद आज 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जा रहा है। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है, जहां साहिबजादों ने आखिरी सांस ली।

आइये जानें इन मासूम बच्चों की शौर्य एवं शहादत की लोमहर्षक गाथा

सिख पंथ में सैकड़ों सालों से दिसंबर के आखिरी सप्ताह (21 दिसंबर से 27 दिसंबर) को बलिदानी सप्ताह के रूप में मनाता रहा है क्योंकि इन्ही दिनों चारों साहिबजादों ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहादत दिया था, जिसके गम में गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी ने भी देह त्याग दिया था.

1704 में जब मुगलों ने हजारों सैनिकों के साथ आनंदपुर साहिब किले पर आक्रमण किया, तब गुरु गोविंद सिंह ने सैनिकों का अनावश्यक रक्त बहाने के बजाय सपरिवार किला छोड़कर चले गये. लेकिन सरसा नदी तट पर मुगल सैनिकों ने उन पर आक्रमण कर दिया, यहां वे परिवार से बिछड़ गये. दोनों बड़े बेटे बची-खुची सेना के साथ चमकौर साहिब पहुंचे, जबकि अन्य दोनों छोटे बेटे (जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह) को साथ लेकर दादी माता गुजरी आगे निकल गये. रास्ते में उन्हें रसोईया गंगू मिला, और परिवार से मिलाने के बहाने वह उन्हें घर ले गया, जहां उसने कुछ मोहरों की लालच में उन्हें नवाब वजीर खान को सौंप दिया. वजीर खान ने उन्हें बुर्ज में कैद कर लिया. यहां माता गुजरी ने दोनों बच्चों को किसी भी कीमत पर धर्म नहीं बदलने की शिक्षा दी.

26 दिसंबर 1704 की सुबह-सवेरे वजीर खान ने दोनों बच्चों को बुलाया और उन्हें इस्लाम धर्म कबूलने का दबाव डाला, जवाब में बच्चों ने बिना भयभीत हुए सो बोले सो निहाल सत श्री अकाल का जयकारा किया. बच्चों के इस जयकारे से क्रोधित होकर वजीर खान ने सैनिकों को आदेश देकर दोनों बच्चों को जिंदा दीवार पर चुनवा दिया. यह खबर जब बुर्ज में कैद माता गुजरी को मिली तो उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.

वीरगति को प्राप्त अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह

परिवार से बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद जी अपने दोनों बेटों के साथ चमकौर पहुंचे, लेकिन यहां वे पुनः मुगल सैनिकों द्वारा पकड़ लिये गये. वहां उपस्थित सिखों के समूह ने गुरू गोबिंद जी को वहां से निकल जाने को कहा. गुरु गोबिंद सिंह ने दोनों बेटों अजीत सिंह एवं बाबा जुझार सिंह को मुगल सैनिकों से लड़ने को भेजा. दोनों बेटे मुगल सैनिकों पर टूट पड़े. 40 सिखों के साथ दोनों भाइयों ने 10 लाख मुगल सैनिकों से जमकर लोहा लिया, लेकिन 22 दिसंबर 1704 को दोनों साहिबजादे धर्म की रक्षार्थ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए.

आज 26 दिसंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम में वीर बाल दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।

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